Friday, January 25, 2008

अविभाज्य


कल शाम एक फूल की परछाईं से पूछा,
क्या तुम्हें कभी किसी ने छुआ है,

उसने मुस्कुरा कर मेरी तरफ देखा,
और धीरे से कहा -

जिसने भी इस फूल को छुआ है,
वह मुझसे होके ही तो गुज़रा है

मैं और यह फूल उजाले से बंधे हैं,
जब तक उजाला है हमें कोई अलग नहीं कर सकता

मैं अपने ख्यालों कि उधेड़-बुन में आगे चली गयी …कि सहसा चौंक उठी

शाम के समय मैं किस्से बातें कर आई ,
शाम को तो परछाईंयां नहीं होती हैं

पीछे मुड के देखा तो चारों तरफ अँधेरा था ,
फूल कहीं नज़र नही आया

अन्दर से एक आवाज़ आई ,
शाम को सिर्फ परछाईंयां ही होती हैं

No comments:

-------Pallavi-------------------